नॉर्मल डिलीवरी या सी सेक्शन? हम हमारे एक्सपर्ट की राय बताना चाहते हैं।

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जन्म देने की प्रक्रिया नॉर्मल रूप से हो सकती है, वैजाइना द्वारा या जब जन्म देने की प्रक्रिया में कुछ मुश्किलें आती हैं तो हमें सर्जरी द्वारा एक ऑपरेटिव विधि की मदद से बच्चे का जन्म दिलवाते है जिसे सीज़ेरियन सेक्शन कहा जाता है। सामान्य वैजाइना से जन्म की प्रक्रिया में  गर्भाशय से वैजाइनल कनाल से होते हुए बच्चा बाहर आता है। सी-सेक्शन माँ के पेट और गर्भाशय में सर्जिकल चीरा लगा कर बच्चे का जन्म होता है।

वैजाइनल डिलीवरी के फ़ायदे:

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  • इस प्रक्रिया में माँ सक्रिय रूप से भाग लेती है, जिससे उसे काफी पॉजिटिव और सशक्त अनुभव मिलता है।
  • इस प्रक्रिया के दौरान त्वचा से त्वचा का संपर्क बच्चे और माँ के बीच बेहतर संबंध बनता है
  • इसमें माँ जल्दी ठीक होती है, आमतौर पर उसी दिन थोड़े दर्द में चलने लगती हैं, जबकि सर्जरी के बाद कम से कम एक दिन के आराम की ज़रूरत होती है। वैजाइनल डिलीवरी में आमतौर पर माँ एक हफ्ते के समय में पूरी तरह से ठीक हो जाती है।
  • कोई दर्दनाक टांके या निशान नहीं हैं। इसके अलावा अस्पताल भी कम जाना पड़ता है।
  • वैजाइनल डिलिवरीमें बच्चा भी गर्भ से बाहर आने के लिए तैयार होता है।
  • वैजाइना से बाहर धकेलने की प्रक्रिया के दौरान, बच्चे के फेफड़े उनमें भरे हुए एमनियोटिक द्रव को बाहर निकाल देते हैं, जिससे सामान्य सांस और सांस संबंधी समस्याएं कम हो जाती हैं।
  • वैजाइनल डिलिवरी वाले बच्चे को कम तकलीफों से गुजरना पड़ता है। उनमें एलर्जी के कम संभावना होती है और वे स्तनपान पहले शुरू कर देते हैं।
  • गर्भ से बाहर आने पर बच्चा अच्छे बैक्टीरिया को अंदर लेता है जो इम्यून सिस्टम को मज़बूत करने में मदद करते हैं।

वैजाइनल डिलीवरी के नुकसान:

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  • बच्चे के जन्म का समय अनिश्चित रहता है और इसे शेड्यूल करने का कोई भी तरीका मौजूद नहीं है।
  • लेबर पेन होना हमेशा दर्दनाक और आमतौर पर स्ट्रेसफुल होता है।
  • प्रसव पीड़ा(लेबर पेन) की कोई निश्चित अवधि नहीं है।
  • कभी-कभी कुछ ऐसी मुश्किलें आ जाती हैं जो बच्चे की हृदय गति में गिरावट का कारण बन सकती हैं। ऐसी स्थितियों में, माँ को एनेस्थीसिया(बेहोशी का इंजेक्शन) दिया जा सकता है और आपात सी-सेक्शन के लिए ले जाया जा सकता है।
  • डिलिवरी के दौरान हुए घाव के कारण, वैजाइनल डिलीवरी के बाद माँ को कुछ सेक्सुअल प्रोब्लम हो सकती हैं।
  • कभी-कभी जब गर्भस्थ में बच्चा बड़ा होता है तो डिलीवरी के दौरान सक्शन कप या फोरसेप की ज़रूरत हो सकती है।

सी-सेक्शन के फ़ायदे:

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  • जब यह पहले से प्लान किया होता है, तो यह माता-पिता को एक शेड्यूल का फ़ायदा देती है, जिस पर निर्भर किया जा सकता है।
  • सी-सेक्शन चुनकर माँ लंबे समय तक रहने वाले प्रसव पीड़ा(लेबर पेन) से बच सकती है। इससे माँ को सभी तरह के तनाव और प्रसव पीड़ा(लेबर पेन) से बचाया जा सकता है।
  • सी-सेक्शन के बाद माँ को किसी भी प्रकार की सेक्सुअल प्रोब्लम नहीं होती है।
  • बच्चे के, माँ को हुए इन्फेक्शन होने की कम संभावना होती है।
  • जन्म के दौरान, बच्चे के घायल होने की संभावना कम होती है।

सी-सेक्शन के नुकसान:

  • एनेस्थीसिया के इस्तेमाल से मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
  • खून की कमी भी ज़्यादा होती है।
  • संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • स्वस्थ होने की अवधि, नेचुरल तरीके से बच्चे के जन्म की तुलना में लंबी होती है।
  • स्तनपान की प्रक्रिया में भी देरी हो सकती है।
  • सी-सेक्शन में बच्चे और माँ दोनों के लिए मृत्यु दर अधिक होती है। एनेस्थीसिया दिए जाने से ये जोखिम बढ़ जाते हैं।
  • कुछ मामलों में बच्चे को जन्म के बाद सांस की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

सी-सेक्शन के लिए प्लान करना कब चुनें:

  • सेफलोपेल्विक डिसप्रोपोर्शन – जब बच्चे के नीचे और बाहर आने के लिए पेल्विक एरिया और आकार उपयुक्त नहीं होता है। यह इस कारण भी हो सकता है कि बच्चा बहुत बड़ा है।
  • प्लेसेंटा-प्रीविया- जब प्लेसेंटा गर्भाशय के निचले हिस्से में होता है और बच्चे से पहले ही अलग होने और बाहर आने से संभावना होती है।
  • एकाधिक(एक से ज़्यादा) गर्भधारण।
  • भ्रूण संकट (फीटल डिस्ट्रेस)
  • पहले से प्लान किए सी-सेक्शन की तब भी सलाह दी जाती है अगर माँ को अन्य मेडिकल परेशानी जैसे सांस की तकलीफ, हाइपोग्लाइसीमिया (निम्न ब्लड शुगर) या तापमान को बनाए रखने तापमान से जुड़ी कोई दूसरी समस्याएं हैं

सी-सेक्शन चुनना ज़िन्दगी बचाने की प्रक्रिया साबित हो सकती है जब प्रसव(लेबर) में कोई बाधा होती है या जब माँ को बड़ी परेशानी या भ्रूण संकट (फीटल डिस्ट्रेस) की परेशानी होती है। हालांकि इस प्रक्रिया को हल्के में नहीं लिया जा सकता है और इसे आसानी से जन्म देने के विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि ज़्यादा देखभाल के साथ फॉलो करने की ज़रूरत है।

डॉ. राजुल मटकर

ऑब्स्टट्रिशन और गायनोकोलॉजिस्ट स्पेशलिस्ट

ब्लॉग के लेखक के बारे में

डॉ. राजुल

डॉ. राजुल मटकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्तऑब्स्टट्रिशन और गायनोकोलॉजिस्ट हैं, जिन्हें 27 वर्षों का नैदानिक अनुभव है। उन्होंने जर्मनी के कील विश्वविद्यालय से मिनिमली-इन्वेसिव गायनेकोलोजिक सर्जरी में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है, और ब्रिटिश सोसाइटी फॉर कॉल्पो सर्वाइकल पैथोलॉजी (बीएससीसीपी) के तहत एडवांस कॉल्पोस्कोपी और निर्देशित प्रक्रियाओं के लिए प्रशिक्षण पूरा किया है।

डॉ. मटकर लोकप्रिय प्रेस के लिए एक सम्मानित और चर्चित स्रोत हैं और देश-विदेश के कई प्रकाशनों में उद्धृत की गई हैं। उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों में भी लेक्चर क्लास ली हैं।

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